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आंध्र प्रदेश विधान परिषद् अधिनियम, 2005 (The Andhra Pradesh Legislative Council Act, 2005)

आंध्र प्रदेश विधान परिषद् अधिनियम, 2005 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत आंध्र प्रदेश राज्य में एक द्विसदनीय विधायिका की स्थापना करने का प्रावधान करता है। यह अधिनियम 11 जनवरी, 2006 को लागू हुआ और इसके माध्यम से राज्य में विधान परिषद् (Legislative Council) का गठन किया गया। इससे पहले, आंध्र प्रदेश में केवल विधान सभा (Legislative Assembly) ही थी, जो एकसदनीय व्यवस्था थी। विधान परिषद् की स्थापना का उद्देश्य राज्य की विधायिका में अधिक प्रतिनिधित्व और विचार-विमर्श को बढ़ावा देना था।
आंध्र प्रदेश विधान परिषद् का गठन राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह कदम राज्य के विभिन्न वर्गों और हितों को विधायिका में प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से उठाया गया था।
2005 से पहले, आंध्र प्रदेश में केवल विधान सभा थी, जिसमें सीधे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते थे। विधान परिषद् की स्थापना से राज्य की विधायिका में द्विसदनीय व्यवस्था लागू हुई, जिससे विधायी प्रक्रिया में अधिक संतुलन और विचार-विमर्श की गुंजाइश बनी।
यह अधिनियम भारतीय संघीय ढाँचे और राज्यों की स्वायत्तता को दर्शाता है, जहाँ राज्यों को अपनी विधायिका का ढाँचा तय करने का अधिकार है।
आंध्र प्रदेश विधान परिषद् अधिनियम, 2005 राज्य की विधायिका को मजबूत करने और विभिन्न हितों को प्रतिनिधित्व देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके माध्यम से राज्य में द्विसदनीय व्यवस्था की शुरुआत हुई, जिससे विधायी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और संतुलन आया। यह अधिनियम न केवल आंध्र प्रदेश के लिए, बल्कि भारतीय संवैधानिक इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

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