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आंध्र राज्‍य अधिनियम, 1953 (The Andhra State Act, 1953)

आंध्र राज्य अधिनियम, 1953 भारतीय संविधान के तहत पहला भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह अधिनियम 1 अक्टूबर, 1953 को प्रभावी हुआ और इसके द्वारा मद्रास राज्य से तेलुगु भाषी क्षेत्रों को अलग करके आंध्र राज्य का गठन किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य तेलुगु भाषी लोगों की सांस्कृतिक और प्रशासनिक आकांक्षाओं को पूरा करना था, जो लंबे समय से एक अलग राज्य की मांग कर रहे थे।
आंध्र राज्य के गठन की मांग का इतिहास ब्रिटिश काल से ही शुरू होता है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में तेलुगु भाषी लोगों ने अपनी अलग पहचान और प्रशासनिक स्वायत्तता के लिए आवाज उठाई। 1920 के दशक में "आंध्र महासभा" ने इस मांग को मजबूती से उठाया। स्वतंत्रता के बाद, 1952 में पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु के बाद हुए जनआंदोलन ने केंद्र सरकार को आंध्र राज्य के गठन के लिए मजबूर कर दिया। इसी के परिणामस्वरूप 1953 में आंध्र राज्य अधिनियम पारित किया गया।
आंध्र राज्य अधिनियम, 1953 ने भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को गति दी। यह अधिनियम एक मिसाल बना और 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना के बाद अन्य भाषाई राज्यों के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। आंध्र राज्य के गठन से तेलुगु भाषी लोगों को अपनी संस्कृति और भाषा के अनुरूप प्रशासनिक व्यवस्था का लाभ मिला, जिससे क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिला।
आंध्र राज्य अधिनियम, 1953 भारतीय संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। इसने न केवल तेलुगु भाषी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया, बल्कि देश में भाषाई और प्रशासनिक न्याय की नींव भी रखी। यह अधिनियम भारत की विविधता में एकता को मजबूत करने वाला एक प्रमुख कदम साबित हुआ।

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