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उपराष्ट्र्पति पेंशन अधिनियम, 1997 (The Vice-President's Pension Act, 1997)
उपराष्ट्रपति पेंशन अधिनियम, 1997 भारत के उपराष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्तियों को पेंशन और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम को संसद द्वारा 28 मई, 1997 को पारित किया गया था और यह भारत गणराज्य के अड़तालीसवें वर्ष में लागू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य उपराष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्तियों को आर्थिक सुरक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करना है।
पेंशन की राशि: सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति को उनके जीवनकाल के लिए मासिक पेंशन दी जाती है, जो उपराष्ट्रपति के वेतन के 50% के बराबर होती है। यदि कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे देता है या उसका कार्यकाल समाप्त हो जाता है, तो उसे यह पेंशन प्राप्त होती है।
परिवार पेंशन: यदि उपराष्ट्रपति की मृत्यु उनके कार्यकाल के दौरान या सेवानिवृत्ति के बाद हो जाती है, तो उनके पति/पत्नी को जीवनभर के लिए परिवार पेंशन प्रदान की जाती है, जो पेंशन की 50% राशि के बराबर होती है।
अन्य सुविधाएं:
आवास: सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति को सरकारी आवास का उपयोग करने का अधिकार होता है, जिसका किराया उन्हें नहीं देना होता।
टेलीफोन सुविधा: उन्हें निशुल्क टेलीफोन सुविधा प्रदान की जाती है।
चिकित्सा सुविधा: सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति और उनके परिवार को मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
उपराष्ट्रपति पेंशन अधिनियम, 1997 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 98 के तहत लाया गया था, जो उपराष्ट्रपति के पद से संबंधित विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम को बनाने का मुख्य कारण उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा को बनाए रखना और सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना था।
समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन किए गए हैं, जैसे कि 2002, 2008 और 2018 में। इन संशोधनों के माध्यम से पेंशन की राशि और अन्य सुविधाओं को अद्यतन किया गया है। उदाहरण के लिए, 2018 के संशोधन में चिकित्सा सुविधाओं के लिए आवंटित राशि को बढ़ाया गया था।
उपराष्ट्रपति पेंशन अधिनियम, 1997 एक व्यापक कानून है जो सेवानिवृत्त उपराष्ट्रपति और उनके परिवार को विभिन्न सुविधाएं प्रदान करता है। यह अधिनियम न केवल उनके योगदान को सम्मानित करता है बल्कि उन्हें एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर भी प्रदान करता है। इसका ऐतिहासिक महत्व इस बात में निहित है कि यह भारतीय लोकतंत्र में उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के लिए एक मिसाल कायम करता है।