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काज़ी अधिनियम, 1880 (The Kazi Act, 1880)

काज़ी अधिनियम, 1880 भारत में मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और कानूनी मामलों से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य काज़ी (मुस्लिम धार्मिक न्यायाधिकारी) के पद पर नियुक्तियों को विनियमित करना था। यह अधिनियम ब्रिटिश काल में पारित किया गया था और इसकी जड़ें 1864 के एक पूर्ववर्ती अधिनियम में निहित हैं, जिसमें काज़ी-उल-कुजात (मुख्य काज़ी) और अन्य काज़ी पदों को समाप्त कर दिया गया था। 1880 के इस अधिनियम ने सरकार को यह अधिकार दिया कि वह मुस्लिम समुदाय की मांग के आधार पर किसी स्थानीय क्षेत्र के लिए एक या अधिक काज़ी नियुक्त कर सके।
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में धार्मिक और सामाजिक मामलों को विनियमित करने के लिए कई कानून बनाए गए। 1864 के अधिनियम ने काज़ी पदों को समाप्त कर दिया था, क्योंकि ब्रिटिश सरकार का मानना था कि ये पद अब अनावश्यक हो चुके हैं। हालाँकि, मुस्लिम समुदाय ने इन पदों के महत्व को बनाए रखने की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप 1880 में यह नया अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने सरकार को यह छूट दी कि वह मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में काज़ी नियुक्त कर सके, बशर्ते कि वहाँ के प्रमुख मुस्लिम निवासियों की सहमति हो।

काज़ी की नियुक्ति: अधिनियम के अनुसार, यदि किसी स्थानीय क्षेत्र में मुस्लिम निवासियों की पर्याप्त संख्या यह चाहती है कि वहाँ काज़ी नियुक्त किया जाए, तो राज्य सरकार उस क्षेत्र के लिए एक या अधिक काज़ी नियुक्त कर सकती है। नियुक्ति से पहले सरकार प्रमुख मुस्लिम निवासियों से परामर्श कर सकती है।
काज़ी की पदच्युति: अधिनियम में काज़ी को पद से हटाने के लिए शर्तें निर्धारित की गई हैं, जैसे कि अयोग्यता, अनैतिक आचरण, या पद के कर्तव्यों का पालन न करना।
नायब काज़ी: काज़ी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए एक या अधिक नायब काज़ी (सहायक काज़ी) नियुक्त कर सकता है। इन्हें भी काज़ी की तरह हटाया जा सकता है।
अधिकारों की सीमा: अधिनियम स्पष्ट करता है कि काज़ी को कोई न्यायिक या प्रशासनिक अधिकार प्रदान नहीं करता है। यह केवल धार्मिक और सामाजिक कार्यों तक सीमित है।
काज़ी अधिनियम, 1880 ने मुस्लिम समुदाय को उनके धार्मिक मामलों में स्वायत्तता प्रदान की और सरकार के हस्तक्षेप को सीमित किया। यह अधिनियम आज भी भारत के कुछ हिस्सों में लागू है और मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में इसका उल्लेख किया जाता है। इसने मुस्लिम समाज की धार्मिक प्रथाओं को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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