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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम, 2020 (The Central Sanskrit Universities Act, 2020)

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम, 2020 भारत सरकार द्वारा संस्कृत भाषा और इससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण, प्रचार-प्रसार तथा शैक्षणिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम तीन प्रमुख संस्थानों—राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (नई दिल्ली), श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (नई दिल्ली), और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (तिरुपति)—को केंद्रीय विश्वविद्यालयों के रूप में उन्नत करता है। इन संस्थानों की स्थापना पहले विभिन्न सोसाइटियों के तहत हुई थी, जिन्हें इस अधिनियम के माध्यम से विश्वविद्यालयों में परिवर्तित किया गया।

इस अधिनियम का प्राथमिक लक्ष्य संस्कृत भाषा और इससे संबंधित पारंपरिक विषयों जैसे भारतीय दर्शन, योग, आयुर्वेद आदि के अध्ययन, अनुसंधान और प्रसार के लिए एक संस्थागत ढांचा प्रदान करना है। इसके अंतर्गत शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार सेवाओं के माध्यम से संस्कृत के ज्ञान को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने का प्रयास किया गया है। साथ ही, यह अधिनियम संस्कृत के साथ-साथ अन्य समकालीन विषयों को एकीकृत करने और अंतर-अनुशासनात्मक शोध को प्रोत्साहित करने पर भी जोर देता है।
सामाजिक समावेशन:
अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालय सभी जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के छात्रों और शिक्षकों के लिए खुले होंगे।
महिलाओं, दिव्यांगों और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं:
अधिनियम के लागू होने से पहले मौजूद संस्थानों के कर्मचारियों, छात्रों और संपत्तियों को नए विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित कर दिया गया है।
पूर्ववर्ती संस्थानों द्वारा प्रदान की गई डिग्रियों और उपाधियों को मान्यता दी गई है।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम, 2020 संस्कृत भाषा और भारतीय ज्ञान परंपराओं के संरक्षण एवं विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम न केवल संस्कृत शिक्षा को आधुनिक शैक्षणिक मानकों से जोड़ता है, बल्कि समाज के सभी वर्गों को इससे जुड़ने का अवसर भी प्रदान करता है। इसके माध्यम से संस्कृत के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और शिक्षण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

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