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केन्‍द्रीय विधि (जम्‍मू-कश्‍मीर पर विस्‍तारण) अधिनियम, 1968 (The Central Laws (Extension to Jammu and Kashmir) Act, 1968)

जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था, जिसके कारण केंद्रीय कानूनों का राज्य में स्वतः विस्तार नहीं होता था। इसके लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक थी। 1960 के दशक में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय एकता और कानूनी समरूपता सुनिश्चित करने के लिए कई केंद्रीय कानूनों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने का निर्णय लिया। इसी उद्देश्य से 1968 का यह अधिनियम बनाया गया, जिसमें एक अनुसूची के माध्यम से विभिन्न केंद्रीय कानूनों को राज्य में विस्तारित किया गया।
इस अधिनियम की अनुसूची में निम्नलिखित केंद्रीय कानूनों को जम्मू-कश्मीर में विस्तारित किया गया:
शासकीय न्यासी अधिनियम, 1913
मोटर यान अधिनियम, 1939
चाट्टीगाँव अकाउंटेंट अधिनियम, 1949
बंदी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम, 1950
सड़क परिवहन अधिनियम, 1950
हिन्दू अधिनियम, 1952
लॉटरी अधिनियम, 1952
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
कंपनी अधिनियम, 1956
विश्वविद्यालय अधिनियम, 1961
महाप्रबंधक अधिनियम, 1963
केंद्रीय विधि (जम्मू-कश्मीर पर विस्तारण) अधिनियम, 1968 एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसके माध्यम से भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय कानूनों की पहुँच सुनिश्चित की। इससे न केवल राज्य का राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे में एकीकरण हुआ, बल्कि प्रशासनिक सुविधा भी बढ़ी। हालाँकि, 2019 में अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद जम्मू-कश्मीर में सभी केंद्रीय कानून स्वतः लागू हो गए, लेकिन 1968 का यह अधिनियम अपने समय में एक बड़ा बदलाव लाने वाला था।

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