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गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक(लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (The Pre-Conception and Prenatal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 1994

भारत में लिंग चयन और भ्रूण लिंग निर्धारण की प्रथाओं ने 1980 और 1990 के दशक में एक गंभीर सामाजिक समस्या का रूप ले लिया था। इसके कारण देश में लिंगानुपात में गिरावट आई, विशेष रूप से महिला भ्रूणों के गर्भपात की घटनाएँ बढ़ीं। इस समस्या को रोकने के लिए, भारत सरकार ने 1994 में गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (PCPNDT Act) को लागू किया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य गर्भधारण से पहले या प्रसवपूर्व अवस्था में भ्रूण के लिंग का पता लगाने और उसके आधार पर गर्भपात करने की प्रथाओं पर रोक लगाना था। 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किए गए, जिसमें लिंग चयन से संबंधित प्रावधानों को और सख्त बनाया गया।

अधिनियम का उद्देश्य
इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य भ्रूण के लिंग निर्धारण और लिंग-आधारित गर्भपात को रोकना है, जिससे महिला भ्रूणों के चयनात्मक उन्मूलन को रोका जा सके। यह अधिनियम प्रसवपूर्व निदान तकनीकों (जैसे अल्ट्रासाउंड, एमनियोसेंटेसिस आदि) के दुरुपयोग को नियंत्रित करता है और केवल चिकित्सकीय आवश्यकताओं के लिए इन तकनीकों के उपयोग की अनुमति देता है।

महत्वपूर्ण संशोधन
2003 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसे और सख्त बनाया गया। इसमें लिंग चयन के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया गया और तकनीकी उपकरणों (जैसे अल्ट्रासाउंड मशीन) के दुरुपयोग को रोकने के लिए अतिरिक्त प्रावधान जोड़े गए।

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