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चापरमुख-सिलघाट रेल लाइन और काटाखाल-लालाबाजार रेल लाइन (राष्‍ट्रीयकरण) अधिनियम, 1982 (The Chaparmukh-Silghat Railway line and the Katakhal-Lalabazar Railway line (Nationalisation) Act, 1982)

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में यातायात और संचार सुविधाओं का विकास सदैव एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। इस क्षेत्र की भौगोलिक जटिलताओं और आर्थिक सीमाओं के कारण निजी कंपनियों द्वारा संचालित रेलवे लाइनों का दीर्घकालिक रूप से कुशलतापूर्वक संचालन कर पाना मुश्किल हो गया था। चापरमुख-सिलघाट और काटाखाल-लालाबाजार रेल लाइनें भी इसी समस्या से जूझ रही थीं। ये लाइनें पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की छोटी लाइन प्रणाली का हिस्सा थीं और इनका संचालन क्रमशः चापरमुख-सिलघाट रेलवे कंपनी लिमिटेड और काटाखाल-लालाबाजार रेलवे कंपनी लिमिटेड द्वारा किया जा रहा था। समय के साथ इन कंपनियों की आर्थिक स्थिति इतनी दुर्बल हो गई कि वे इन रेल लाइनों का संचालन जारी रखने में असमर्थ हो गईं। इसके परिणामस्वरूप, पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के शेष भाग के बीच संचार सुविधा प्रभावित होने लगी, जिससे इस क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न हुई।

इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने चापरमुख-सिलघाट और काटाखाल-लालाबाजार रेल लाइन (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1982 पारित किया। इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य इन रेल लाइनों का राष्ट्रीयकरण करके उनके संचालन को केंद्र सरकार के अधीन लाना था, ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में यातायात और आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाया जा सके। इसके अलावा, यह अधिनियम इन रेल लाइनों के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के अन्य भागों के बीच संपर्क को मजबूत करने के लिए भी महत्वपूर्ण था।

यह अधिनियम पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। रेलवे लाइनों के राष्ट्रीयकरण से न केवल यातायात सुविधाओं में सुधार हुआ, बल्कि इस क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास को भी गति मिली। इसके माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के अन्य भागों के बीच संपर्क मजबूत हुआ, जिससे व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिला।

चापरमुख-सिलघाट और काटाखाल-लालाबाजार रेल लाइन (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1982, एक ऐतिहासिक कदम था जिसने पूर्वोत्तर क्षेत्र की यातायात समस्याओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अधिनियम के माध्यम से केंद्र सरकार ने न केवल रेलवे लाइनों के संचालन को सुचारू बनाया, बल्कि इस क्षेत्र के समग्र विकास में भी योगदान दिया। यह अधिनियम भारत के राष्ट्रीय एकीकरण और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास की दिशा में एक सार्थक प्रयास था।

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