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चीनी विकास निधि अधिनियम, 1982 (The Sugar Development Fund Act, 1982)

चीनी विकास निधि अधिनियम, 1982 भारत सरकार द्वारा चीनी उद्योग के विकास और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम 19 मार्च, 1982 को लागू हुआ और इसके माध्यम से चीनी विकास निधि (Sugar Development Fund - SDF) की स्थापना की गई। इस निधि का प्राथमिक उद्देश्य चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करना, उनके पुनरुद्धार और आधुनिकीकरण को सुनिश्चित करना, तथा चीनी उद्योग से जुड़े अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है।
1980 के दशक में भारत का चीनी उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा था, जैसे पुरानी तकनीक, कम उत्पादकता, और वित्तीय संकट। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने चीनी विकास निधि अधिनियम, 1982 पारित किया। इस अधिनियम के तहत, चीनी उपकर अधिनियम, 1982 द्वारा एकत्र किए गए उत्पाद शुल्क (Excise Duty) से प्राप्त धनराशि को चीनी विकास निधि में जमा किया जाता है। यह निधि चीनी मिलों को ऋण, अनुदान और अन्य वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए उपयोग की जाती है।
चीनी उद्योग का आधुनिकीकरण: इस निधि के माध्यम से चीनी मिलों को नई तकनीक और उपकरण खरीदने के लिए वित्तीय सहायता मिली, जिससे उनकी उत्पादकता और दक्षता में सुधार हुआ।
अनुसंधान और विकास: चीनी उद्योग से जुड़े अनुसंधान को बढ़ावा मिला, जिससे नई तकनीकों और उत्पादों का विकास हुआ।
किसानों और मिल मालिकों को लाभ: चीनी मिलों के सुधार से किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिला और मिल मालिकों को वित्तीय स्थिरता प्राप्त हुई।
पर्यावरण अनुकूल तकनीक: निधि के माध्यम से कोजेनरेशन (Cogeneration) और इथेनॉल उत्पादन जैसी परियोजनाओं को बढ़ावा मिला, जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान हुआ।
चीनी विकास निधि अधिनियम, 1982 भारत के चीनी उद्योग के विकास और आधुनिकीकरण में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इसके माध्यम से स्थापित निधि ने चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करके उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद की है। हालांकि, समय-समय पर इस निधि के प्रबंधन और उपयोग पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसके बिना भारत के चीनी उद्योग की प्रगति की कल्पना करना मुश्किल है। भविष्य में इस अधिनियम में और सुधार करके इसे और अधिक पारदर्शी एवं प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

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