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डाकघर नकदी पत्र अधिनियम, 1917 (The Post Office Cash Letters Act, 1917)

डाकघर नकदी पत्र अधिनियम, 1917 (Post Office Cash Certificate Act, 1917) भारत में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पारित एक महत्वपूर्ण कानून था जिसका उद्देश्य डाकघरों द्वारा जारी किए जाने वाले पंचवर्षीय नकदी पत्रों (5-Year Cash Certificates) के प्रबंधन और संचालन को विनियमित करना था। यह अधिनियम 19 सितंबर, 1917 को लागू हुआ और इसका संक्षिप्त नाम "डाकघर नकदी पत्र अधिनियम, 1917" रखा गया।
1917 का यह अधिनियम ब्रिटिश भारत में वित्तीय सुरक्षा और डाकघर-आधारित बचत योजनाओं को बढ़ावा देने की नीति का हिस्सा था। उस समय डाकघर न केवल संचार का माध्यम थे बल्कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) के प्रमुख केंद्र भी थे। पंचवर्षीय नकदी पत्रों को एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में प्रोत्साहित किया गया था, जिसमें नागरिकों को निश्चित अवधि के बाद ब्याज सहित राशि वापस मिलती थी।
1920 के संशोधन द्वारा धारा 2 और 3 में तकनीकी बदलाव किए गए।
1943 में धारा 8 में भुगतान सीमा से संबंधित प्रावधान जोड़े गए।
1948 के विधि अनुकूलन आदेश (Adaptation Order) के तहत पाकिस्तान संबंधी प्रावधान शामिल किए गए।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, इस अधिनियम को गोवा, दमन और दीव (1962), दादरा और नागर हवेली (1963) तथा पांडिचेरी (1963) जैसे नए केंद्रशासित प्रदेशों में भी लागू किया गया।
डाकघर नकदी पत्र अधिनियम, 1917 ने भारत में डाकघर-आधारित वित्तीय सेवाओं को एक कानूनी ढांचा प्रदान किया। यह अधिनियम नागरिकों के निवेश को सुरक्षित करने, मृत्यु के बाद कानूनी दावों को सुव्यवस्थित करने और डाकघरों को एक विश्वसनीय वित्तीय संस्थान के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। आज भी डाकघर बचत योजनाओं की नींव में इस ऐतिहासिक अधिनियम की छाप देखी जा सकती है।

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