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तटरक्षक अधिनियम, 1978 (The Coast Guard Act, 1978)

तटरक्षक अधिनियम, 1978 भारत की संसद द्वारा 18 अगस्त, 1978 को पारित किया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारत के सामुद्रिक क्षेत्रों में सुरक्षा एवं राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए एक सशस्त्र बल के रूप में तटरक्षक का गठन करना था। इसकी आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि भारत की लंबी तटरेखा (लगभग 7,500 किमी) और विशाल समुद्री क्षेत्र में अवैध गतिविधियाँ जैसे तस्करी, अवैध मछली पकड़ना, और समुद्री सीमाओं का उल्लंघन बढ़ रहा था। इस अधिनियम के माध्यम से तटरक्षक को एक संगठित और कानूनी ढाँचा प्रदान किया गया, जिससे यह अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सके।
तटरक्षक अधिनियम, 1978 ने भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके तहत तटरक्षक बल को कानूनी अधिकार मिले, जिससे वह समुद्री अपराधों और सीमा उल्लंघनों से प्रभावी ढंग से निपट सका। इस अधिनियम ने तटरक्षक को एक संगठित और अनुशासित बल के रूप में स्थापित किया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और समुद्री हितों की रक्षा करता है।
तटरक्षक अधिनियम, 1978 भारत की समुद्री सुरक्षा का एक आधारभूत कानून है, जिसने तटरक्षक बल को एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा प्रदान किया। यह अधिनियम न केवल अपराधियों के लिए दंड का प्रावधान करता है, बल्कि तटरक्षक के सदस्यों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी परिभाषित करता है। इस प्रकार, यह अधिनियम राष्ट्रीय सुरक्षा और समुद्री कानून व्यवस्था को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अध्याय 7 में तटरक्षक न्यायालयों की स्थापना और उनकी प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। ये न्यायालय तटरक्षक के सदस्यों द्वारा किए गए अपराधों की सुनवाई करते हैं और उन्हें दंडित करने का अधिकार रखते हैं।
न्यायालय के निर्णय को सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक होता है, विशेष रूप से मृत्युदंड के मामलों में।
अध्याय 4 में विभिन्न अपराधों जैसे विद्रोह, अनुशासनहीनता, अवज्ञा, और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने आदि के लिए दंड का प्रावधान किया गया है।
उदाहरण के लिए, विद्रोह करने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है, जबकि अनुशासनहीनता के मामलों में कम सख्त सजा का प्रावधान है।

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