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दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 (The Damodar Valley Corporation Act,1948)

दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 को भारत सरकार द्वारा 27 मार्च, 1948 को पारित किया गया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य दामोदर नदी घाटी क्षेत्र के समग्र विकास और प्रबंधन के लिए एक संस्थागत ढांचा प्रदान करना था। दामोदर नदी, जो झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है, बार-बार आने वाली बाढ़ और जल प्रबंधन की चुनौतियों के लिए कुख्यात थी। ब्रिटिश काल में भी इस क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के लिए कई प्रयास किए गए थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस की गई। इसी क्रम में, अमेरिका के टेनिसी वैली अथॉरिटी (TVA) मॉडल से प्रेरित होकर दामोदर घाटी निगम (DVC) की स्थापना की गई।

दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 ने दामोदर घाटी क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके तहत बांधों (जैसे तिलैया, मैथन और पंचेत) और जलाशयों का निर्माण किया गया, जिससे बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और विद्युत उत्पादन में सुधार हुआ। निगम ने क्षेत्र में औद्योगीकरण को भी बढ़ावा दिया, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हुए और आर्थिक विकास को गति मिली।
हालांकि, समय के साथ निगम को वित्तीय और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन इसकी भूमिका दामोदर घाटी के समग्र विकास में अहम रही है। आज भी यह निगम जल संसाधनों और ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

दामोदर घाटी निगम अधिनियम, 1948 एक ऐतिहासिक कानून है जिसने दामोदर घाटी क्षेत्र के विकास और प्रबंधन के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया। इसके माध्यम से न केवल बाढ़ और जल संकट का समाधान हुआ, बल्कि क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी नई दिशा मिली। यह अधिनियम भारत के बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास कार्यक्रमों का एक प्रमुख उदाहरण है।

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