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नारियल विकास बोर्ड अधिनियम, 1979 (The Coconut Development Board Act, 1979)

नारियल विकास बोर्ड अधिनियम, 1979 भारत सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जिसका उद्देश्य नारियल उद्योग के विकास को बढ़ावा देना और इससे जुड़े मामलों का प्रबंधन करना है। यह अधिनियम 17 मार्च, 1979 को लागू हुआ और इसके तहत नारियल विकास बोर्ड की स्थापना की गई। इस बोर्ड का मुख्य कार्य नारियल उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन और अनुसंधान को बढ़ावा देना है ताकि नारियल किसानों और उद्योग से जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ मिल सके।
भारत में नारियल की खेती और उद्योग का लंबा इतिहास रहा है, विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में नारियल उद्योग को संगठित करने और इसके विकास के लिए एक केंद्रीय निकाय की आवश्यकता महसूस की गई। इसी उद्देश्य से 1979 में नारियल विकास बोर्ड अधिनियम पारित किया गया। यह अधिनियम नारियल उद्योग को एक संरचित और वैज्ञानिक ढांचा प्रदान करता है तथा किसानों, उद्यमियों और शोधकर्ताओं के लिए सहायता और मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है।
इस अधिनियम ने नारियल उद्योग को एक संगठित और वैज्ञानिक आधार प्रदान किया है।
नारियल किसानों को बेहतर तकनीक, वित्तीय सहायता और बाजार तक पहुंच मिली है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।
नारियल उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिला है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।
अनुसंधान और विकास के माध्यम से नारियल की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
नारियल विकास बोर्ड अधिनियम, 1979 एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान करता है जिसके तहत नारियल उद्योग का समग्र विकास संभव हुआ है। यह अधिनियम नारियल किसानों, उद्यमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक मंच प्रदान करता है तथा देश की अर्थव्यवस्था में नारियल उद्योग के योगदान को बढ़ाता है। इसके माध्यम से नारियल उद्योग को आधुनिक और टिकाऊ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।

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