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पशु अतिचार अधिनियम, 1871 (The Cattle Trespass Act, 1871)

पशु अतिचार अधिनियम, 1871 ब्रिटिश भारत में 13 जनवरी, 1871 को लागू किया गया एक महत्वपूर्ण कानून था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पशुओं द्वारा कृषि भूमि, सार्वजनिक सड़कों और अन्य संपत्तियों को होने वाले नुकसान (अतिचार) से निपटने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करना था। उस समय भारत एक कृषि प्रधान देश था, और पशुओं द्वारा फसलों को नुकसान पहुँचाना एक बड़ी समस्या थी। इस अधिनियम के माध्यम से सरकार ने पशु अतिचार को नियंत्रित करने, पशुओं को पकड़ने, उन्हें कांजी हाउस (पशुधर) में रखने और मुआवजे की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का प्रयास किया।

अधिनियम का उद्देश्य
इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य पशुओं द्वारा होने वाले नुकसान से किसानों और संपत्ति मालिकों की सुरक्षा करना था। यह अधिनियम पशु अतिचार की स्थिति में पशुओं को पकड़ने, उन्हें कांजी हाउस में रखने और मालिकों से जुर्माना वसूलने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। इसके अलावा, यह अधिनियम अवैध रूप से पशुओं को पकड़ने या छुड़ाने पर दंड का भी प्रावधान करता है।

महत्व और प्रभाव
यह अधिनियम ब्रिटिश काल में किसानों और संपत्ति मालिकों के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने पशु अतिचार से होने वाले नुकसान को कम करने और एक व्यवस्थित प्रक्रिया स्थापित करने में मदद की। हालाँकि, समय के साथ इस अधिनियम में संशोधन किए गए और आधुनिक कानूनों ने इसकी जगह ले ली, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व अभी भी बना हुआ है।


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