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प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 (The Technology Development Board Act, 1995)

प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 भारत सरकार द्वारा देश में तकनीकी विकास और स्वदेशी प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए लाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम को 16 दिसंबर, 1995 को लागू किया गया था। यह अधिनियम उन औद्योगिक संस्थानों और अन्य संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था जो स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास और उपयोग में संलग्न हैं या व्यापक घरेलू अनुप्रयोगों के लिए आयातित प्रौद्योगिकी को अपनाने का प्रयास करते हैं।
इस अधिनियम के पीछे मुख्य उद्देश्य भारत में तकनीकी स्वावलंबन को बढ़ावा देना और देश के औद्योगिक विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका को मजबूत करना था। यह अधिनियम अनुसंधान और विकास संस्थानों को भी समर्थन देता है जो केन्द्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।

प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 ने भारत में तकनीकी विकास को गति प्रदान की है। इसके माध्यम से स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास और उपयोग को बढ़ावा मिला है, जिससे देश की औद्योगिक क्षमता में वृद्धि हुई है। बोर्ड द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सहायता ने अनुसंधान और विकास गतिविधियों को सुगम बनाया है और नवाचार को प्रोत्साहित किया है।
प्रौद्योगिकी विकास और उपयोग निधि: अधिनियम के तहत एक निधि का गठन किया गया है जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए अनुदान, अन्य स्रोतों से प्राप्त राशियाँ और निधि से प्राप्त आय शामिल होती हैं। इस निधि का उपयोग अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
वित्तीय प्रबंधन: बोर्ड को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बजट तैयार करना होता है और वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है। बोर्ड के लेखों की जाँच भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा की जाती है।
केन्द्र सरकार का नियंत्रण: बोर्ड को केन्द्र सरकार के निर्देशों का पालन करना होता है और सरकार को बोर्ड को निलंबित या भंग करने का अधिकार है यदि बोर्ड अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहता है।

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