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भरणपोषण आदेश प्रवर्तन अधिनियम, 1921 (The Maintenance Orders Enforcement Act, 1921)

भरणपोषण आदेश प्रवर्तन अधिनियम, 1921 (Maintenance Orders Enforcement Act, 1921) एक महत्वपूर्ण कानून है जिसका उद्देश्य भारत और विदेशी राज्यक्षेत्रों के बीच भरणपोषण आदेशों (Maintenance Orders) के पारस्परिक प्रवर्तन को सुगम बनाना है। यह अधिनियम पारिवारिक कानून के अंतर्गत आता है और इसका मुख्य फोकस पत्नी, बच्चों या अन्य आश्रितों के लिए निर्धारित भरणपोषण राशि के संग्रह और प्रवर्तन को सुनिश्चित करना है। यह अधिनियम 5 अक्टूबर, 1921 को लागू हुआ और इसे अधिनियम संख्या 18 के रूप में पारित किया गया।
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत और अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों के बीच कानूनी सहयोग को मजबूत करने के लिए यह अधिनियम बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद, इसमें संशोधन किए गए ताकि यह नए राजनीतिक और प्रशासनिक ढाँचे के अनुरूप हो सके। 1950, 1951, 1952, 1963, 1968 और 1983 के संशोधनों ने इसके दायरे और प्रावधानों को विस्तार दिया। उदाहरण के लिए, 1951 के संशोधन ने "राज्यों" शब्द को "भारत" से प्रतिस्थापित किया, और 1983 के संशोधन ने नियम बनाने की प्रक्रिया को और स्पष्ट किया।
आदेशों का प्रवर्तन (धारा 8)
एक बार पंजीकृत हो जाने के बाद, भरणपोषण आदेश को उसी तरह लागू किया जा सकता है जैसे कि वह भारत के किसी न्यायालय द्वारा दिया गया हो।
नियम बनाने की शक्ति (धारा 12)
केंद्र सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को लागू करने के लिए नियम बना सकती है, जिसमें फीस, प्रक्रिया और अन्य प्रशासनिक विवरण शामिल हो सकते हैं।
1951 का संशोधन: "राज्यों" शब्द को "भारत" से बदला गया।
1983 का संशोधन: नियम बनाने की प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया और संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता जोड़ी गई।

भरणपोषण आदेश प्रवर्तन अधिनियम, 1921 एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है जो भारत और विदेशी राज्यक्षेत्रों के बीच भरणपोषण आदेशों के प्रवर्तन को सुगम बनाता है। यह अधिनियम पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने और आश्रितों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है। समय-समय पर किए गए संशोधनों ने इसे वर्तमान कानूनी और प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए रखा है। यह अधिनियम आज भी प्रासंगिक है और पारिवारिक विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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