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भारतीय दण्ड संहिता (The Indian Penal Code)

भारतीय दंड संहिता (IPC) को वर्ष 1860 में ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किया गया था। यह संहिता भारत के विधिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसे लॉर्ड थॉमस बबिंग्टन मैकॉले की अध्यक्षता में तैयार किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में एक समान और व्यवस्थित दंड प्रणाली स्थापित करना था, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। IPC को 6 अक्टूबर, 1860 को लागू किया गया और यह 1 जनवरी, 1862 से प्रभावी हुआ। संहिता का निर्माण अंग्रेजी कानून और यूरोपीय विधि प्रणालियों से प्रेरित था, लेकिन इसमें भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को भी ध्यान में रखा गया।

महत्व और प्रासंगिकता:
IPC भारतीय न्याय प्रणाली का आधारस्तंभ है और यह सुनिश्चित करता है कि समाज में न्याय और व्यवस्था बनी रहे। यह संहिता न्यायालयों को अपराधों की सही व्याख्या करने और उचित दंड देने में सहायता करती है। समय-समय पर IPC में संशोधन किए गए हैं ताकि यह समकालीन सामाजिक और तकनीकी चुनौतियों का सामना कर सके, जैसे साइबर अपराध और महिलाओं के खिलाफ हिंसा।



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