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भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (The State Bank of India Act, 1955)

भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 भारत के वित्तीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की स्थापना करना था, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का एक सहायक बैंक बनाया गया। इस अधिनियम के माध्यम से, इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के उपक्रम, संपत्तियों और दायित्वों को भारतीय स्टेट बैंक में स्थानांतरित किया गया। यह कदम देश में बैंकिंग सुधारों और ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए उठाया गया था।
भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना से पहले, इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया देश का प्रमुख बैंक था, जिसकी स्थापना 1921 में हुई थी। हालाँकि, स्वतंत्रता के बाद, देश को एक ऐसे बैंक की आवश्यकता थी जो रिजर्व बैंक के नीतियों के अनुरूप काम करे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सहायक हो। इसी उद्देश्य से 1955 में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम पारित किया गया और 1 जुलाई, 1955 को भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना की गई।
कारोबार और कार्य:
बैंक को बैंकिंग कारोबार चलाने, ऋण प्रदान करने, जमा स्वीकार करने और अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने का अधिकार दिया गया। साथ ही, बैंक को रिजर्व बैंक के एजेंट के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।
विशेष धनराशि और लाभांश:
अधिनियम में एकीकरण और विकास निधि तथा आरक्षित निधि की स्थापना का प्रावधान किया गया। इन निधियों का उपयोग बैंक के वित्तीय स्थिरता और विकास के लिए किया जाता है। लाभांश वितरण के नियम भी अधिनियम में स्पष्ट किए गए हैं।
नियंत्रण और निर्देश:
बैंक को केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनुसार कार्य करना होता है। सरकार को बैंक के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का अधिकार है, विशेषकर जनहित या बैंक के स्थिरता के मामलों में।
भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 ने देश के बैंकिंग क्षेत्र को मजबूती प्रदान की और ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया। इस अधिनियम के माध्यम से स्थापित भारतीय स्टेट बैंक आज देश का सबसे बड़ा और विश्वसनीय बैंक है, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।

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