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राजस्थान प्रतिपाल्‍य अधिकरण अधिनियम, 1951 (The Rajasthan Court of Wards Act, 1951)

राजस्थान प्रतिपाल्य अधिकरण अधिनियम, 1951, राजस्थान राज्य में नाबालिगों, मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों और उनकी संपत्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य पारंपरिक व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित करना था, जहां छोटे रजवाड़ों और रियासतों में प्रतिपाल्य (वार्ड) और उनकी संपत्तियों का प्रबंधन अलग-अलग नियमों के तहत होता था। यह अधिनियम राजस्थान के एकीकरण (1949) के बाद लागू किया गया, जिससे राज्य में एक समान कानूनी प्रणाली स्थापित की जा सके। इससे पहले, विभिन्न रियासतों में प्रतिपाल्य अधिकरणों के लिए अलग-अलग नियम थे, जैसे जयपुर प्रतिपाल्य अधिनियम (1925), बीकानेर प्रतिपाल्य अधिनियम (1928), आदि। इन सभी को समाहित करते हुए 1951 का यह अधिनियम बनाया गया।

महत्व और प्रभाव
यह अधिनियम राजस्थान में प्रतिपाल्यों और उनकी संपत्तियों के संरक्षण के लिए एक समान और पारदर्शी प्रणाली स्थापित करता है। इसके माध्यम से नाबालिगों और अक्षम व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा की जाती है और उनकी संपत्ति का उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जाता है। साथ ही, यह अधिनियम राज्य के एकीकरण के बाद कानूनी व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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