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लेवी चीनी समान कीमत निधि अधिनियम, 1976 (The Levy Sugar Uniform Price Fund Act, 1976)

लेवी चीनी समान कीमत निधि अधिनियम, 1976 भारत सरकार द्वारा चीनी उद्योग को नियंत्रित करने और देशभर में चीनी की कीमतों को समान बनाए रखने के उद्देश्य से लाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का मुख्य लक्ष्य उत्पादकों द्वारा चीनी की बिक्री पर अधिक वसूली (एक्सेस लेवी) को नियंत्रित करना तथा इस राशि को एक केंद्रीय निधि में जमा करना था, जिसका उपयोग चीनी की कीमतों को स्थिर करने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए किया जा सके।

1970 के दशक में भारत में चीनी उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा था, जिनमें कीमतों में उतार-चढ़ाव, उत्पादकों द्वारा अधिक मूल्य वसूलना, और उपभोक्ताओं तक चीनी की पहुँच सुनिश्चित करना शामिल था। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने 1976 में यह अधिनियम पारित किया। इसके माध्यम से एक "लेवी चीनी समान कीमत निधि" की स्थापना की गई, जिसमें उत्पादकों द्वारा अधिक वसूली की गई राशियों को जमा किया जाना था। 1984 में इस अधिनियम में संशोधन किए गए, जिसमें ब्याज दरों और जमा प्रक्रिया से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट किया गया।
जमा प्रक्रिया: उत्पादकों को अधिक वसूली की राशि को निधि में निर्धारित समय सीमा के भीतर जमा करना अनिवार्य है, अन्यथा सरकार इसे भू-राजस्व की बकाया राशि के रूप में वसूल कर सकती है।
उपभोक्ताओं के अधिकार: जिन उपभोक्ताओं से अधिक वसूली की गई है, वे निधि से मुआवजे का दावा कर सकते हैं, बशर्ते कि वे थोक या खुदरा विक्रेता न हों और उन्होंने अधिक कीमत का भार आगे न बढ़ाया हो।
निधि का प्रबंधन: निधि का प्रशासन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, और अप्रयुक्त राशि को छह महीने के बाद केंद्रीय राजस्व में जमा कर दिया जाता है।
दंड प्रावधान: अधिनियम का उल्लंघन करने वाले उत्पादकों को जुर्माना या कारावास की सजा दी जा सकती है।

1984 के संशोधन ने अधिनियम को और स्पष्ट किया, विशेष रूप से ब्याज दरों और जमा प्रक्रिया के संदर्भ में। हालाँकि, आर्थिक उदारीकरण और बाजार-आधारित नीतियों के चलते, इस अधिनियम की प्रासंगिकता समय के साथ कम हो गई है। फिर भी, यह ऐतिहासिक रूप से भारत में चीनी उद्योग के विनियमन और उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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