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विधिक मापविज्ञान अधिनियम, 2009 (The Legal Metrology Act, 2009)

भारत में माप और तौल के मानकों को विनियमित करने का इतिहास काफी पुराना है। ब्रिटिश काल में भी इस दिशा में कुछ प्रयास किए गए थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसकी आवश्यकता और अधिक महसूस की गई। 1976 में बाट और माप मानक अधिनियम (Standards of Weights and Measures Act, 1976) पारित किया गया, जिसका उद्देश्य मीट्रिक प्रणाली को अपनाना और मापन के मानकों को सुनिश्चित करना था। इसके बाद 1985 में बाट और माप मानक (प्रत्ययन) अधिनियम लाया गया, जिसमें मापन उपकरणों के प्रमाणीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया। इन अधिनियमों की सीमाओं और नए तकनीकी विकास को ध्यान में रखते हुए, 2009 में विधिक मापविज्ञान अधिनियम (Legal Metrology Act, 2009) लागू किया गया, जो पुराने कानूनों को निरस्त करते हुए एक व्यापक और आधुनिक ढाँचा प्रदान करता है।
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भारत में माप और तौल के मानकों को स्थापित करना, व्यापार और वाणिज्य में उपयोग होने वाले बाट और माप के उपकरणों की शुद्धता सुनिश्चित करना, और उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी से बचाना है। यह अधिनियम मीट्रिक प्रणाली को अनिवार्य बनाता है और गैर-मानक उपकरणों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
सत्यापन और स्टाम्पिंग (धारा 24):
सभी मापन उपकरणों का नियमित सत्यापन और स्टाम्पिंग अनिवार्य है।
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परीक्षण केंद्रों द्वारा यह प्रक्रिया की जाती है।
दंड और जुर्माना (धारा 25-47):
गैर-मानक उपकरणों के उपयोग, जालसाजी, या माप में हेराफेरी करने पर कठोर दंड (जुर्माना और कारावास) का प्रावधान है।
उदाहरण के लिए, गैर-मानक बाट या माप के उपयोग पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना या 6 महीने तक की कैद हो सकती है।
अपील (धारा 50):
अधिनियम के तहत दिए गए निर्णयों के खिलाफ अपील की व्यवस्था है।

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