top of page

विधि व्य‍वसायी अधिनियम, 1879 (The Legal Practitioners Act, 1879)

विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 (Legal Practitioners Act, 1879) भारत में कानूनी पेशे से जुड़े व्यवसायियों (जैसे वकील, प्लीडर, मुख्तार, राजस्व अभिकर्ता आदि) के पंजीकरण, अधिकारों, कर्तव्यों और अनुशासनात्मक प्रावधानों को विनियमित करने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम 29 अक्टूबर, 1879 को पारित किया गया था और इसे 1879 के अधिनियम संख्या 18 के रूप में जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य कानूनी पेशेवरों के कार्यों को संगठित और सुव्यवस्थित करना था।
ब्रिटिश भारत में कानूनी पेशे को विनियमित करने के लिए विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 एक महत्वपूर्ण कदम था। इससे पहले, कानूनी पेशेवरों के कार्यों को विभिन्न क्षेत्रीय कानूनों और विनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जिससे असमानता और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती थी। इस अधिनियम ने कानूनी पेशेवरों के लिए एक समान ढांचा प्रदान किया और उनके अधिकारों, कर्तव्यों तथा अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं को स्पष्ट किया। यह अधिनियम आगे चलकर भारतीय वकील अधिनियम, 1961 (Advocates Act, 1961) का आधार बना, जिसने कानूनी पेशे को और अधिक संगठित किया।
धारा 12 और 13: यदि कोई विधि व्यवसायी अनैतिक आचरण करता है या न्यायालय की अवमानना करता है, तो उसे निलंबित या अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
धारा 21 से 24: राजस्व अभिकर्ताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए प्रावधान।
धारा 36: न्यायालय या राजस्व अधिकारी उन व्यक्तियों की सूची तैयार और प्रकाशित कर सकते हैं जो टाउट (अनधिकृत रूप से कानूनी व्यवसाय करने वाले) के रूप में कार्य करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है।
धारा 32: यदि कोई व्यक्ति बिना पंजीकरण के कानूनी व्यवसाय करता है, तो उसे जुर्माना या कारावास की सजा हो सकती है।
धारा 33 और 34: निलंबित या अयोग्य घोषित विधि व्यवसायी द्वारा कानूनी व्यवसाय करने पर भी दंड का प्रावधान है।
विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 ने भारत में कानूनी पेशे को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पहले, कानूनी पेशेवरों के कार्यों को विभिन्न क्षेत्रीय कानूनों द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जिससे असमानता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता था। इस अधिनियम ने एक समान ढांचा प्रदान किया और कानूनी पेशेवरों के लिए मानक स्थापित किए। यह अधिनियम आगे चलकर भारतीय वकील अधिनियम, 1961 का आधार बना, जिसने कानूनी पेशे को और अधिक संगठित और पेशेवर बनाया।
समय के साथ, इस अधिनियम में कई संशोधन किए गए। विशेष रूप से, भारतीय वकील अधिनियम, 1961 के लागू होने के बाद इस अधिनियम के कई प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया। हालाँकि, कुछ प्रावधान आज भी प्रासंगिक हैं और कानूनी पेशे के नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 भारत में कानूनी पेशे के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसने कानूनी पेशेवरों के अधिकारों, कर्तव्यों और अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं को स्पष्ट किया और एक समान ढांचा प्रदान किया। यह अधिनियम आधुनिक कानूनी पेशे की नींव रखने में सहायक रहा और आज भी इसके कुछ प्रावधान प्रासंगिक बने हुए हैं।

  • Picture2
  • Telegram
  • Instagram
  • LinkedIn
  • YouTube

Copyright © 2025 Lawcurb.in

bottom of page