top of page

शत्रु-सम्‍पत्ति अधिनियम, 1968 (The Enemy Property Act, 1968)

शत्रु-संपत्ति अधिनियम, 1968 भारत सरकार द्वारा उन संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है, जो देश के शत्रुओं या शत्रु देशों के नागरिकों से संबंधित हैं। इस अधिनियम की जड़ें 1962 और 1971 के भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान युद्धों से जुड़ी हैं। इन युद्धों के दौरान, भारत सरकार ने शत्रु देशों के नागरिकों और उनकी संपत्तियों को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए। 1962 के भारत रक्षा अधिनियम और 1971 के भारत रक्षा अधिनियम के तहत शत्रु-संपत्ति की अवधारणा को मजबूती दी गई, जिसके आधार पर 1968 में यह विशेष अधिनियम लागू किया गया।
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य शत्रु देशों, शत्रु नागरिकों (शत्रु-प्रजा), या शत्रु फर्मों की संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेना और उनका प्रबंधन करना है। इसमें "शत्रु" की परिभाषा विस्तृत है, जिसमें वे व्यक्ति या संगठन शामिल हैं जो भारत के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में लिप्त हैं या शत्रु देशों से संबंध रखते हैं।

यह अधिनियम भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक नीतियों का एक अहम हिस्सा रहा है। विशेष रूप से, 1965 और 1971 के युद्धों के बाद पाकिस्तानी नागरिकों की संपत्तियों को शत्रु-संपत्ति घोषित किया गया। 2017 के संशोधन ने इन संपत्तियों के स्थायी नियंत्रण को सुनिश्चित किया, जिससे सरकार को इनका दीर्घकालिक प्रबंधन करने में सहायता मिली।
शत्रु-संपत्ति अधिनियम, 1968 एक ऐसा कानून है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए बनाया गया है। यह अधिनियम न केवल शत्रु देशों की संपत्तियों को नियंत्रित करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी संपत्तियों का उपयोग राष्ट्रहित में किया जाए। इसका ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ में विशेष महत्व है, खासकर देश की सुरक्षा और आर्थिक नीतियों के परिप्रेक्ष्य में।

  • Picture2
  • Telegram
  • Instagram
  • LinkedIn
  • YouTube

Copyright © 2025 Lawcurb.in

bottom of page