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सिख गुरुद्वारा (अनुपूरक) अधिनियम, 1925 (The Sikh Gurdwaras (Supplemental) Act, 1925)

सिख गुरुद्वारा (अनुपूरक) अधिनियम, 1925 (1925 का अधिनियम संख्या 24) एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज है जिसे 11 सितंबर, 1925 को पारित किया गया। यह अधिनियम मूल रूप से सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 (1925 का पंजाब अधिनियम संख्या 8) के कुछ उपबंधों को अनुपूरित (पूरक) करने के लिए बनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य सिख धार्मिक स्थलों (गुरुद्वारों) के प्रबंधन और नियंत्रण से संबंधित मामलों को स्पष्ट करना था।
1920 के दशक में सिख समुदाय के भीतर गुरुद्वारों के प्रबंधन को लेकर गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए थे। उस समय कई गुरुद्वारों का नियंत्रण महंतों और उदासीन संप्रदायों के हाथों में था, जिनके प्रबंधन को लेकर सिख समुदाय में असंतोष था। इस स्थिति को बदलने के लिए सिख समुदाय ने गुरुद्वारा सुधार आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप 1925 में मूल सिख गुरुद्वारा अधिनियम बना। हालांकि, इस अधिनियम में कुछ कमियाँ थीं, जिन्हें दूर करने के लिए अनुपूरक अधिनियम लाया गया।
नाम और प्रारंभ: इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम "सिख गुरुद्वारा (अनुपूरक) अधिनियम, 1925" है। यह अधिनियम 1 नवंबर, 1925 से प्रभावी हुआ।
सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 की पुष्टि: इस अधिनियम ने मूल अधिनियम के उन प्रावधानों को मान्यता दी जो लाहौर स्थित उच्च न्यायालय की अधिकारिता को बढ़ाते या घटाते थे। इसे भारतीय विधान-मंडल द्वारा पारित माना गया।
संशोधन: इस अधिनियम ने मूल अधिनियम की धारा 12 में संशोधन किया, जिसे बाद में 1938 के निरसन अधिनियम द्वारा हटा दिया गया।
सिख गुरुद्वारा (अनुपूरक) अधिनियम, 1925 ने सिख समुदाय को अपने धार्मिक स्थलों के प्रबंधन पर अधिकार सुनिश्चित करने में मदद की। इसके माध्यम से गुरुद्वारों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही स्थापित करने का प्रयास किया गया। यह अधिनियम सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने आधुनिक गुरुद्वारा प्रबंधन प्रणाली की नींव रखी।

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