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खाद्य निगम अधिनियम, 1964 (The Food Corporation Act, 1964)

खाद्य निगम अधिनियम, 1964 भारत सरकार द्वारा खाद्यान्नों और अन्य खाद्य पदार्थों के व्यापार, भंडारण, वितरण, और उत्पादन से संबंधित गतिविधियों को व्यवस्थित करने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम 10 दिसंबर, 1964 को पारित हुआ और इसके माध्यम से भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य खाद्य निगमों की स्थापना की गई। इन निगमों का प्राथमिक उद्देश्य देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, किसानों को उचित मूल्य दिलाना, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को मजबूत करना है।
1960 के दशक में भारत खाद्यान्नों की कमी और अकाल जैसी स्थितियों से जूझ रहा था। हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही सरकार ने खाद्यान्नों के उत्पादन, भंडारण, और वितरण को व्यवस्थित करने की आवश्यकता महसूस की। इसी क्रम में खाद्य निगम अधिनियम, 1964 लाया गया, जिसके तहत भारतीय खाद्य निगम (FCI) की स्थापना हुई। FCI को कृषि उपज का खरीद, भंडारण, और वितरण करने का अधिकार दिया गया, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

इस अधिनियम का उद्देश्य निम्नलिखित था:
किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिलाना।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से गरीबों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराना।
खाद्यान्नों के भंडारण और वितरण की व्यवस्था को मजबूत करना।
किसानों के हित में: FCI ने किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
खाद्य सुरक्षा: इस अधिनियम के माध्यम से देश में अनाज का पर्याप्त भंडारण सुनिश्चित किया गया, जिससे अकाल और संकट के समय लोगों को राहत मिली।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): FCI द्वारा संचालित PDS ने गरीबों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने में मदद की।
खाद्य निगम अधिनियम, 1964 भारत की खाद्य सुरक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण आधार है। इसके माध्यम से स्थापित FCI ने देश में अनाज के भंडारण, वितरण, और किसानों के हितों की रक्षा में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, समय-समय पर इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसके बिना भारत की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था की कल्पना करना मुश्किल है। आने वाले वर्षों में इस अधिनियम में और सुधार करके इसे और अधिक पारदर्शी एवं कुशल बनाने की आवश्यकता है।

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